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Regel 1: |
Regel 1: |
| Beveel gerust uw wegen is een vertaling van Befiehl du deine Wege. Het is een geestelijk lied van de dichter Paul Gerhardt. Het werd voor het eerst gepubliceerd in 1653 in de vijfde editie van Johann Crügers Gesangbuch ''Praxis Pietatis Melica''. | | Beveel gerust uw wegen is een vertaling van Befiehl du deine Wege. Het is een geestelijk lied van de dichter Paul Gerhardt. Het werd voor het eerst gepubliceerd in 1653 in de vijfde editie van Johann Crügers Gesangbuch ''Praxis Pietatis Melica''. |
| + | == Titel == |
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| + | === Oorspronkelijke taal en titel === |
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− | == Text == | + | === Liedbundel(s) === |
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| + | Dit lied is opgenomen in de volgende liedbundels: |
− | ! Originalfassung
| + | Liedboek van de kerken 1973 (LvdK gez. xx) |
− | ! Heute üblicher Text
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− | |-
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− | |<poem>
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− | Befiehl du deine wege /
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− | Und was dein hertze kränckt /
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− | Der allertreusten pflege
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− | Deß / der den himmel lenckt /
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− | Der wolcken / lufft und winden /
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− | Gibt wege / lauf und bahn /
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− | Der wird auch wege finden /
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− | Da dein fuß gehen kan.
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− | Dem HErren must du trauen /
| + | == Tekst == |
− | wann dirs soll wol ergehn:
| + | De tekst van het lied is niet auteursrechtvrij en daarom hier niet opgenomen. |
− | Auf sein werck must du schauen /
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− | Wann dein werck sol bestehn.
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− | Mit sorgen und mit grämen
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− | Wie mit selbsteigner pein
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− | Läßt Gott ihm gar nichts nehmen /
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− | Es muß erbäten seyn.
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− | Dein ewge treu und gnade /
| + | === Ontstaan en inhoud === |
− | O Vater / weiß und sieht /
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− | Was gut sey oder schade
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− | Dem sterblichen geblüt /
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− | Und was du denn erlesen /
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− | Das treibst du / starcker Held /
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− | Und bringst zum stand und wesen /
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− | Was deinem rath gefällt.
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− | Weg hast du allerwegen /
| + | === Tekstdichter === |
− | An mitteln fehlt dirs nicht /
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− | Dein thun ist lauter segen /
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− | Dein gang ist lauter liecht /
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− | Dein werck kan niemand hindern /
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− | Dein arbeit darf nicht ruhn /
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− | Wenn du / was deinen kindern
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− | Ersprießlich ist / wilt thun.
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− | Und ob gleich alle teufel
| + | === Vertaler === |
− | Hie wolten widerstehn /
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− | So wird doch ohne zweifel
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− | Gott nicht zurücke gehn /
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− | Was er ihm fürgenommen /
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− | Und was er haben wil /
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− | Das muß doch endlich kommen
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− | Zu seinem zweck und ziel.
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− | Hoff / o du arme seele /
| + | == Muziek == |
− | Hoff und sey unverzagt /
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− | Gott wird dich aus der höle /
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− | Da dich der kummer plagt /
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− | Mit grossen gnaden rücken /
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− | Erwarte nur die zeit /
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− | So wirst du schon erblicken
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− | Die Sonn der schönsten freud.
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− | Auf / auf / gib deinem schmertze
| + | === Componist === |
− | Und sorgen gute nacht /
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− | Laß fahren / was das hertze
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− | Betrübt und traurig macht /
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− | Bist du doch nicht Regente /
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− | Der alles führen sol /
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− | GOtt sitzt im regimente
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− | Und führet alles wol.
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− | Ihn / ihn laß thun und walten /
| + | === Koorbewerking === |
− | Er ist ein weiser Fürst /
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− | Und wird sich so verhalten /
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− | Daß du dich wundern wirst /
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− | Wann er / wie ihm gebüret /
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− | Mit wunderbarem rath
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− | Das werck hinaus geführet /
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− | Das dich bekümmert hat.
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− | Er wird zwar eine weile
| + | === Orgelbewerking === |
− | Mit seinem trost verziehn
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− | Und thun an seinem theile /
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− | Als hätt in seinem sinn
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− | Er deiner sich begäben /
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− | Und soltst du für und für
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− | In angst und nöthen schweben /
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− | So frag er nichts nach dir.
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− | Wirds aber sich befinden /
| + | == Liturgisch gebruik == |
− | Daß du ihm treu verbleibst /
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− | So wird er dich entbinden /
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− | Da dus am wengsten gläubst /
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− | Er wird dein herzze lösen
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− | Von der so schweren last /
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− | Die du zu keinem bösen
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− | Bisher getragen hast.
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− | Wohl dir / du kind der treue /
| + | == Literatuur == |
− | Du hast und trägst davon
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− | Mit ruhm und danckgeschreye
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− | Den sieg und ehrenkron /
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− | Gott gibt dir selbst die palmen
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− | In deine rechte hand
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− | Und du singst freudenpsalmen /
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− | Dem / der dein leid gewandt.
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− | Mach end / o HErr / mach ende
| + | == Externe links == |
− | An aller unser noth /
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− | Stärck unser füß und hände /
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− | Und laß bis in den tod
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− | Uns allzeit deiner pflege /
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− | Und treu empfohlen sein /
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− | So gehen unsre wege
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− | Gewiß zum himmel ein.<ref name="PPM-1653" />
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− | </poem>
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− | |<poem>
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− | ''Befiehl'' du deine Wege
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− | und was dein Herze kränkt
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− | der allertreusten Pflege
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− | des, der den Himmel lenkt.
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− | Der Wolken, Luft und Winden
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− | gibt Wege, Lauf und Bahn,
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− | der wird auch Wege finden,
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− | da dein Fuß gehen kann.
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− | ''Dem Herren'' mußt du trauen,
| + | == Voetnoten == |
− | wenn dir’s soll wohlergehn;
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− | auf sein Werk mußt du schauen,
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− | wenn dein Werk soll bestehn.
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− | Mit Sorgen und mit Grämen
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− | und mit selbsteigner Pein
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− | läßt Gott sich gar nichts nehmen,
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− | es muß erbeten sein.
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− | ''Dein’'' ewge Treu’ und Gnade,
| + | == Text == |
− | o Vater, weiß und sieht,
| + | {| |
− | was gut sei oder schade
| + | ! Originalfassung |
− | dem sterblichen Geblüt;
| + | ! Heute üblicher Text |
− | und was du dann erlesen,
| + | |- |
− | das treibst du, starker Held,
| + | |<poem> |
− | und bringst zum Stand und Wesen,
| + | regel 1 |
− | was deinem Rat gefällt.
| + | regel 2 |
− | | + | regel 3 |
− | ''Weg'' hast du allerwegen,
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− | an Mitteln fehlt dir’s nicht;
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− | dein Tun ist lauter Segen,
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− | dein Gang ist lauter Licht;
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− | dein Werk kann niemand hindern,
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− | dein Arbeit darf nicht ruhn,
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− | wenn du, was deinen Kindern
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− | ersprießlich ist, willst tun.
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− | ''Und'' ob gleich alle Teufel
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− | hier wollten widerstehn,
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− | so wird doch ohne Zweifel
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− | Gott nicht zurücke gehn;
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− | was er sich vorgenommen
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− | und was er haben will,
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− | das muß doch endlich kommen
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− | zu seinem Zweck und Ziel.
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− | | |
− | ''Hoff'', o du arme Seele,
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− | hoff und sei unverzagt!
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− | Gott wird dich aus der Höhle,
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− | da dich der Kummer plagt,
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− | mit großen Gnaden rücken;
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− | erwarte nur die Zeit,
| |
− | so wirst du schon erblicken
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− | die Sonn der schönsten Freud.
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− | ''Auf'', auf, gib deinem Schmerze
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− | und Sorgen gute Nacht,
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− | laß fahren, was das Herze
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− | betrübt und traurig macht;
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− | bist du doch nicht Regente,
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− | der alles führen soll,
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− | Gott sitzt im Regimente
| |
− | und führet alles wohl.
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− | ''Ihn'', ihn laß tun und walten,
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− | er ist ein weiser Fürst
| |
− | und wird sich so verhalten,
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− | daß du dich wundern wirst,
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− | wenn er, wie ihm gebühret,
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− | mit wunderbarem Rat
| |
− | das Werk hinausgeführet,
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− | das dich bekümmert hat.
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− | ''Er'' wird zwar eine Weile
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− | mit seinem Trost verziehn
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− | und tun an seinem Teile,
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− | als hätt in seinem Sinn
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− | er deiner sich begeben,
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− | und sollt’st du für und für
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− | in Angst und Nöten schweben,
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− | als frag er nichts nach dir.
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− | ''Wird’s'' aber sich befinden,
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− | daß du ihm treu verbleibst,
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− | so wird er dich entbinden,
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− | da du’s am mindsten glaubst;
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− | er wird dein Herze lösen
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− | von der so schweren Last,
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− | die du zu keinem Bösen
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− | bisher getragen hast.
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− | ''Wohl'' dir, du Kind der Treue,
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− | du hast und trägst davon
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− | mit Ruhm und Dankgeschreie
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− | den Sieg und Ehrenkron;
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− | Gott gibt dir selbst die Palmen
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− | in deine rechte Hand,
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− | und du singst Freudenpsalmen
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− | dem, der dein Leid gewandt.
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− | ''Mach En''d, o Herr, mach Ende
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− | mit aller unsrer Not;
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− | stärk unsre Füß und Hände
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− | und laß bis in den Tod
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− | uns allzeit deiner Pflege
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− | und Treu empfohlen sein,
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− | so gehen unsre Wege
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− | gewiß zum Himmel ein.<ref>Textfassung nach: ''[[Evangelisches Gesangbuch]]''. Ausgabe für die Evangelisch-Lutherischen Kirchen in Bayern und Thüringen. 2. Auflage. Evangelischer Presseverband für Bayern, München 1995, ISBN 3-583-12100-7, S. 661–663.</ref>
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| </poem> | | </poem> |
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